Sunday, June 7, 2009

"मैं हु ही ऐसा"

इसको देखा, उसको देखा,
उसको देखा, तुमको देखा,
तुमको देखा, सबको देखा,
पर नही मिला कोई मेरे जैसा,
शायद मैं हु ही ऐसा //१//

लोगो को भूख से मरते देखा,

सब कुछ मैंने करके देखा,
जिंदगी बन गई है धोखा,
जिसके पास नही है पैसा,
शायद में हु ही ऐसा //२//

परवाने को जलते देखा,
भवरे को है मरते देखा,
फूलो को भी लुटते देखा,
पर लुटा न कोई मेरे जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //३//

मन्दिर- मस्जिद जाके देखा ,
वैद- कुरान उठा के देखा ,
लोगो ने भगवान् को देखा ,
पर नही मिला कोई इंसान के जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //४//

उसने मुझको फिर बुलाया,
दिल पर एक शुरुर सा छाया,
फिर वही चाय का प्याला आया,
पर नही मिला में उसके जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //५//

जब भी उसको पाना चाहा,
उसको ये बतलाना चाहा,
लोगो को ये कहते देखा,
नही हु में उसके जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //६//

अब तन्हाई में जीता हु,
खाता हु न कुछ पीता हु,
बिन मांगे ही पाया सब कुछ,
पर न जाने हो गया हु कैसा,
शायद में हु ही ऐसा //७//

2 comments:

  1. मन्दिर- मस्जिद जाके देखा ,
    वैद- कुरान उठा के देखा ,
    लोगो ने भगवान् को देखा ,
    पर नही मिला कोई इंसान के जैसा,
    शायद में हु ही ऐसा //
    ye lines mujhe sab se zayada acchi lage

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  2. bahut accha likhte hai aap.....swagat hai dil se...

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