इसको देखा, उसको देखा,
उसको देखा, तुमको देखा,
तुमको देखा, सबको देखा,
पर नही मिला कोई मेरे जैसा,
शायद मैं हु ही ऐसा //१//
लोगो को भूख से मरते देखा,
सब कुछ मैंने करके देखा,
जिंदगी बन गई है धोखा,
जिसके पास नही है पैसा,
शायद में हु ही ऐसा //२//
परवाने को जलते देखा,
भवरे को है मरते देखा,
फूलो को भी लुटते देखा,
पर लुटा न कोई मेरे जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //३//
मन्दिर- मस्जिद जाके देखा ,
वैद- कुरान उठा के देखा ,
लोगो ने भगवान् को देखा ,
पर नही मिला कोई इंसान के जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //४//
उसने मुझको फिर बुलाया,
दिल पर एक शुरुर सा छाया,
फिर वही चाय का प्याला आया,
पर नही मिला में उसके जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //५//
जब भी उसको पाना चाहा,
उसको ये बतलाना चाहा,
लोगो को ये कहते देखा,
नही हु में उसके जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //६//
अब तन्हाई में जीता हु,
खाता हु न कुछ पीता हु,
बिन मांगे ही पाया सब कुछ,
पर न जाने हो गया हु कैसा,
शायद में हु ही ऐसा //७//
Sunday, June 7, 2009
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मन्दिर- मस्जिद जाके देखा ,
ReplyDeleteवैद- कुरान उठा के देखा ,
लोगो ने भगवान् को देखा ,
पर नही मिला कोई इंसान के जैसा,
शायद में हु ही ऐसा //
ye lines mujhe sab se zayada acchi lage
bahut accha likhte hai aap.....swagat hai dil se...
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