Wednesday, May 13, 2009

ख्वाब और सच्चाई

एक बार रात को हम सैर पर निकल पडे,
उस सैर में हम जिंदगी से आगे चल पड़े /
रस्ते में हमें एक इंसान मिला,
सुंदर और जवान मिला //
हमने पूछा,
कौन हो तुम,
वो बोला-
तुम मुझे नही जानते ,

मैं ही लोगो की जिंदगी को रंगीन बनता हु,
बैठे-बैठे ही उन्हें दूर-दराज की सैर करता हु / /
मेरी वजह से ही
गरीबी और अमीरी के बीच की खाई दूर होती है ,
मेरी वजह से ही जिंदगी भरपूर होती ही,
मेरी वजह से ही गरीब आदमी सपने सजोता है ,
और भूखा रहने के बावजूद चैन से सोता है,
मेरी वजह से ही जिंदगी में रुबाब होता है /
असल में मेरा नाम ही ख्वाब होता है //
मैंने कहा-

तुम ही ख्वाब हो ,
जो आदमी को पागल बनता है ,
और गरीब आदमी को भी भरपेट खाना मिलने का झुटा सपना दिखलाता है /

ख्वाब बोला मैं झूठा ही सही,

पर तुम्हारी सच्चाई से तो अच्छा हु /

तुम्हारी सच्चाई-

गरीबो और अमीरों के बीच अन्तर बनती है ,

जबकि मैं गरीबो और अमीरों को जोड़ता हु ,

झूठे ख्वाब ही दिखलाता हु ,

पर गरीबो के चेहरे पर कुछ पल के लिए ही सही ,

हसी तो छोड़ता हु //

4 comments:

  1. realy nice one..
    मैं गरीबो और अमीरों को जोड़ता हु ,

    झूठे ख्वाब ही दिखलाता हु ,

    पर गरीबो के चेहरे पर कुछ पल के लिए ही सही ,

    हसी तो छोड़ता हु //

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  2. bahut sunder.
    kya ap jante hai thakur ji ne bachne badhne ka rasta dikha kar lakhon longo ke jiwan ko amnagal ke raste se nikala hai.
    apke pas unke kuch anubhav hai to pl. likhiye na.

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  3. koi khwab se is trh bhi milta hai..... bhut hi achhi hai aapki rchna

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